Rajim Chhattisgarh : राजिम छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले से करीब 45 km. की दूरी पर स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले का एक छोटा सा प्रसिद्ध शहर है। समृद्ध पुरातत्व सांस्कृतिक विरासत एवं प्राचीन मंदिरों का यह सम्पूर्ण केंद्र बिंदु पूरी तरह से इस स्थान पर वर्णित होता है। राजिम कई तरह के संगीतक एवं सांस्कृतिक उत्सवों का भी एक घर है, राजिम लोचन महोत्सव भी उनमें से ही एक है। राजिम स्थल में ही तीन पवित्र नदियों का संगम भी होता है। तीन नदियों का यह पवित्र संगम स्थल अपार भक्तों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। जिस तरह लोग प्रयागराज में डुबकी लगाने जाते है उसी तरह छत्तीसगढ़ के लोगो के साथ ही साथ पूरे भारत के श्रद्धालु कई बार राजिम में त्रिवेणी नदियों के संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने हेतु यहां आते हैं।
इतिहास : वर्तमान समय में राजिम गाँव से शहर के रूप में विकसित ही चुकी है जो गरियाबंद जिले में ही स्थित है। यह प्रारंभ में बिन्द्रनगढ़ नामक तहसील के रूप में जाना एवं पहचाना जाता था। ब्रिटिश काल के शासन काल के दौरान गरियाबंद क्षेत्र महासमुंद तहसील का एक बड़ा हिस्सा था। इस क्षेत्र को पहले अधिक सार्वजनिक पहुंच हेतु सक्षम बनाए रखने के लिए इस क्षेत्र को 4 उप तहसीलों में विभाजित भी किया गया था, जैसे कि छुरा, फिंगेश्वर, देवभोग एवं मणिपुर। स्थानीय लोगों के बताए अनुसार, पहले इस क्षेत्र पर ट्राइबल किंग्स एवं कुछ भूस्वामियों का ही शासन था। तीन नदियों के संगम होने के करना यह भक्तों के लिए एक पवित्र एवं प्रसिद्ध नदी है। हिंदू कैलेंडर के बताए अनुसार शुभ दिनों पर पवित्र डुबकी लगाना शुभ एवं अच्छा माना जाता है। हिंदू धर्म का यह एक अभिन्न एवं महत्पूर्ण अंग होने के नाते, यह क्षेत्र भगवान विष्णु जी मंदिर के लिए अत्याधिक प्रसिद्ध है। इस तरह यह भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक के रूप में माना जाता है।
राजिम का कुंभ मेला, राजिम माघी पुर्णिमा मेला : महानदी छत्तीसगढ़ राज्य की एक जीवनदायिनी नदी है और इसी नदी के तट पर बसा है राजिम की यह पावन नगरी। राजिम में माघ पूर्णिमा में भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। राजिम के माघ पूर्णिमा का यह मेला संपूर्ण भारत भर में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ राज्य के लाखों श्रद्धालु इस मेले मे सामिल होते हैं। माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक कुल पंद्रह दिनों तक यहां मेला लगता है। जिसे राजिम कुंभ मेला के नाम से जाना जाता हैं। महानदी, पैरी नदी एवं सोढुर तीनो नदी के तट के किनारे लगने वाले इस मेले का सम्पूर्ण आकर्षण का केंद्र बिंदु संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव जी का मंदिर है। लेकिन अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेले के नाम से जाना जाता है। काफी दूर दूर से श्रद्धालू यहां भगवान विष्णु जी का दर्शन पाने आते है। मेले में काफी भराव भी होता है जो यहां आने वाले श्रद्धालुओं को और भी अधिक अपनी ओर आकर्षित करती है।
सुविधाएं : राजिम छत्तीसगढ़ राज्य के महानदी के तट पर स्थित एक अत्यंत ही प्रसिद्ध तीर्थ है। जिसके कारण इसे छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” के नाम से भी जाना जाता हैं। जहां के प्रसिद्ध राजीव लोचन नामक मंदिर में भगवान श्री विष्णु जी प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष इस पावन धरा में माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक भव्य एवं विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। राजिम के इस स्थल पर महानदी एवं पैरी नदी व सोंढुर इन तीन नदियों का संगम है। किसके कारण ही यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम भी कहलाता है। इन तीन नदियों के संगम स्थल पर ही मध्य में कुलेश्वर महादेव जी का विशाल मंदिर भी स्थित है। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान श्री राम जी के द्वारा इस स्थान पर भगवान महादेव जी की पूजा किया गया था। साथ ही इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र भी है। ऐसी मान्यता भी है कि इसी स्थल पर सृष्टि के आरम्भ में भगवान श्री हरी विष्णु के नाभि से निकला हुआ कमल स्थित था एवं ब्रह्मा जी के द्वारा इसी स्थल से सृष्टि की रचना किया गया। जिसके कारण इसका नाम भी कमलक्षेत्र पड़ गया। साथ ही त्रिवेणी संगम स्थल पर अस्थि विसर्जन एवं संगम किनारे पिंडदान था श्राद्ध, तर्पण भी किया जाता है।
राजिम स्थित राजीव लोचन आने का सही समय : अक्टूबर महीने से लेकर मार्च महीने का समय राजिम की यात्रा हेतु सबसे अच्छा है। क्योंकि सर्दियों के दौरान तापमान भी नीचे गिर जाता है, जिससे आप सभी जगहों को मस्त शर्द वातावरण एम घूम सकते है और आनंद ले सकते है। लेकिन यदि आपको गर्मी का मौसम भी पसंद है, तो इन ऐतिहासिक स्मारकों एवं स्थल का देखने हेतु गरमीयों के दिनो में भी यात्रा कर सकते हैं।
राजिम स्थित अन्य मंदिरे –
श्री कुलेश्वर महादेव जी का मन्दिर : राजिम में कुलेश्वर महादेव जी का मंदिर भी अत्यंत प्रमुख है, जो की करीब 9वी शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह मन्दिर महानदी के ठीक बीच में एक द्वीप पर बना हुआ है। जिसका निर्माण काफ़ी सादगी के साथ किया गया है। मन्दिर के पास ‘नाला’ , ‘सोमा’ एवं कलचुरी वंश के कई स्तम्भ भी पाए गए हैं।
राजीव लोचन मंदिर कैसे पहुंचें :
सड़क के द्वारा : रायपुर के पंडरी बस स्टैंड से लगभग 47 km. की दूरी पर स्थित है। अगर आप राज्य से बाहर से यहां भ्रमण हेतु आते है तो आपको राष्ट्रीय राजमार्ग 47 पे ही जाना होगा जो की भोपाल शहर से करीब 665 km. की दूरी पर है। राजिम पहुंचने में भोपाल से करीब आपको लगभग 12 से 14 घंटे लग जायेंगे।
रेल मार्ग द्वारा : यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन राजिम रेलवे स्टेशन ही है तथा इसके अलावा नजदीकी रेलवे स्टेशन रायपुर रेल्वे स्टेशन से करीब 50 km. की दूरी पर ही राजिम स्थित राजीव लोचन मंदिर स्थित है।
हवाई मार्ग द्वारा : रायपुर स्थित स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से केवल 42.5 km. की ही दूरी पर स्थित है। अतः अगर आप दूरस्थ क्षेत्रों से हवाई मार्ग द्वारा यहां आना चाहते है तो पहले आपको रायपुर के हवाई अड्डे पर उतरना होगा। जिसके बाद आप सड़क मार्ग द्वारा भी आसानी से यहां पहुंच सकते है।