Marahi Mata : घने जंगलों के बीच स्थित है मरही माता का मंदिर, धार्मिक स्थल होने के साथ ही यह एक पिकनिक स्पॉट भी है, जहा दर्शन के उपरांत लोग यहां पिकनिक मनाया करते है काफी भीड़ भाड़ लगी रहती है। कुछ ऐसी है यहां का इतिहास से लेकर अब तक की संपूर्ण जानकारी –
श्रद्धालुओं की मान्यता : मरही माई मन्दिर पूरे छत्तीसगढ़ के साथ ही साथ अन्य राज्यों के भी श्रद्धालुओं की आस्था की प्रतीक है। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला एवं बिलासपुर के बीच भनवारटंक नामक रेलवे स्टेशन है। जंगल के बीच स्थित होने के कारण दुर्गम स्थल में से एक है। स्टेशन के ठीक पास ही मरही माता का मंदिर है। श्रद्धालुओं की आस्था गहरी होने के कारण यहां मंदिर में हमेशा भीड़ लगा ही रहता है। वर्ष के दोनों नवरात्र के अवसर पर ज्योति कलश स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। यहां श्रद्धालु नारियल बांध कर मन्नत मांगते हैं एवं पूरी होने पर दर्शन करने जरूर पहुंचते हैं।
रेलवे स्टेशन के पास स्थित : भनवारटंक रेलवे स्टेशन के पास प्रकृति द्वारा दोनो हाथों से पर्याप्त सुंदरता बांटी गईं है, जो अकल्पनीय एवं अदभुत है। पर्याप्त वृक्षों के कारण यहां सघन वन है। वन्यजीव होने के कारण यहां रात में लोग घरों से बहुत कम ही बहार निकला करते हैं। पहले स्टेशन के पास केवल कुछ दुकानें ही नारियल अगरबत्ती के लिए लगी रहती थी, लेकिन श्रद्धालुओ के बढ़ने से यहां दुकानों की संख्या काफ़ी बढ़ गाई है। यह क्षेत्र किसी बड़े हिल स्टेशन से कम नहीं है दूर- दूर जहा नजर जाती है केवल घने जंगल ही दिखाई पड़ती है। मरही माता की महिमा ही ऐसी है कि यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार भी धीमी हों जाती है ।
मंदिर के पास ही रेल्व ट्रैक : लोग यहां से माता की जयकारा करके ट्रैन से गुजरते है। यात्री दर्शन के बिना यहां से नहीं गुजरते , मरही माता मंदिर रेलवे ट्रेक के पास में ही स्थित है विशेषकर नवरात्रि के दिनो में यहां श्रद्धालुओं एवं दर्शानिको की भीड़ देखते ही बनती है। मध्य प्रदेश के साथ ही साथ काफी दूर दूर से यहां श्रद्धालु दर्शन के लिए आया करते हैं। स्थानीय लोगों जो यहां काफ़ी पहले से रहते आ रहें है उनके अनुसार पहले माता चौरा में पूजा अर्चना होती थी। मरही माता मंदिर का निर्माण सन् 1984 के दौरान हुए इंदौर बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस रेल दुर्घटना के बाद से किया गया है। नर्मदा एक्सप्रेस एवं मालगाड़ी के कर्मचारियों के द्वारा यहां मरही माता की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया । उनकी यह मान्यता भी है कि मरही माता ही उनकी रक्षा करती है।
इतिहास (History) : ” मरही माता विकास समिति के अध्यक्ष ” राज रक्सेल ” जी बताते है कि मंदिर का इतिहास लगभग 101 वर्ष पुराना है। वहीं ट्रस्ट का गठन सन् 1995 में ही किया गया है। साथ ही मंदिर में दो जगह अखंड दीप भी जलते रहते है। एक दीप मां मरही के पास तो दूसरा दीप मंदिर के अंदर अस्पताल से लगी हुई समाधि स्थल पर जलती रहती है। जहां पर कांकेर के महाराजा नरहर देवरिया एवं महारानी की समाधि स्थित है। जहां स्थित पत्थर पर संवत 1917 अंकित की गई है। डोमार समाज की कुल देवी मानी जाने वाली मरही माता के भक्त किसी एक समाज से ना होकर सभी समाज के है। जैसे ही सुबह होती है वैसे ही मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होने लगती है। जहां खासकर मरीज एवं डॉक्टरों की संख्या अधिक देखी जा सकती है। “
बली प्रथा पर रोक : किसी जानवर की बली लेकर मां भक्तों की मुरादें पूरी करेंगी, इस तरह की पुरानी एवं रूढ़ी सोच को बदलने की जरूरत थी , जिसको देखते हुए मंदिर में 25 वर्ष पहले ही बलि देने की प्रथा पर रोक लगा दी गई है। अगर समिति की मानें तो बली देने से माता की ओर से कई भाव अनेक एवं विभिन्न रूपों में मिले , जिसको देखते हुए यह प्रतीत होने लगा कि इस प्रथा को बंद कर दिया जाना चहिए। मंदिर में बलि दे रहे जानवर को अब सिर्फ मां के दर्शन करा कर हार फूल चढ़ा कर भक्तों को वापस दे दिया जाता है।”
अन्य स्थलें : ” यहां मरही माता के अलावा मंदिर में , सांईं बाबा, हनुमान जी , मां दुर्गा , भगवान शंकर पार्वती का पूरा परिवार, संतोषी माता के अलावा पांच भगवान का मंदिर बने हुए है। इन सभी के अलावा भी मंदिर में दीप जोत, भंडारा का आयोजन किया जाता है। जहां सैकड़ों की संख्या में भक्तों द्वारा प्रसाद ग्रहण किया जाता हैं।
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