विवरण : भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से करीब 130 km. की दूरी पर एवं कवर्धा ( कबीरधाम ) जिले से करीब 17 km. की दूरी पर चौरागाँव में एक हजार साल पुराना मंदिर स्थित है। इस मंदिर को करीब 7वीं से 10वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव के द्वारा बनवाया था। साथ ही ऐसी मान्यता भी है कि गोड राजाओं के कुल देवता भोरमदेव थे तथा वे भगवान शिव के परम उपासक थे। तथा भोरमदेव भी भगवान शिवजी का ही एक नाम है, और यही कारण भी है जिसके चलते इस मंदिर को भोरमदेव के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर देवताओं एवं मानव आकृतियों का किया गया उत्कृष्ट नकाशी के साथ ही मूर्तिकला के चमत्कार के कारण ही आंखों को बहुत अधिक भाता है। यहां पर पूजा करने के लिए हर साल केवल देश से ही नहीं बल्की विदेशों से भी यहां भरी श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां के मंदिर के गर्भगृह में स्थित मुख्य प्रतिमा शिवलिंग की है। मैकल की पहाड़ियां यहां पर एक शानदार एवं भव्य पृष्ठभूमि का निर्माण करती हैं | यहाँ के मंदिर में खजुराहो के मंदिर की भी झलक दिखाई पड़ती है, और यही कारण भी है कि भोरामदेव को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है।
भोरमदेव महोत्सव : राज्य सरकार के द्वारा यहां पर विशेष रूप से भोरमदेव महोत्सव का आयोजन मार्च के अंतिम सप्ताह या फिर अप्रैल के पहले सप्ताह में ही आयोजित कराया जाता है। जिसका हिस्सा बनने के लिए पूरे देश भर से काफ़ी संख्या में लोग इस गांव में आया करते हैं।भोरमदेव मंदिर नागर शैली का एक अत्यंत ही उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर अपने सौंदर्य से खजुराहो की याद दिलाती है। जिसकी बनावट हमारे देश की खजुराहो कहे जाने वाले कोणार्क के सूर्य मंदिर एवं अजंता-एलोरा आदि मंदिरों की उत्कृष्ठ कलाकृतियों से मिलती जुलती है।
भोरमदेव मंदिर किसके द्वार एवं कब बनवाया गया : भोरमदेव मंदिर का निर्माण क़रीब 7 वीं से 10 वीं शताब्दी (1089 ई.) में फ़णी नागवंशी के शासक गोपालदेव राय के द्वारा कराया गया था। मंदिर के मंडप में स्थित एक दाड़ी मूँछ वाले योगी की बैठी हुई एक मूर्ति पर एक लेख भी लिखा है। जिसके अनुसार इस मूर्ति के निर्माण का सही समय कल्चुरी संवत 8.40 है। ( कल्चुरी संवत 8.40 यानी 10 वीं शताब्दी के मध्य का समय ) जिससे यह भी पता चलता है कि भोरमदेव के इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण 6वें फ़णी नागवंशी राजा गोपाल देव के द्वारा अपने शासन काल में कराया गया था।
मंदिर का पूरा विवरण (History Of Bhoramdeo Temple): यहां के मंदिर का मुख पूर्व की दिशा में है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर एवं उत्कृष्ठ उदाहरण है। साथ ही इस मंदिर में तीन द्वार से प्रवेश किया जा सकता है। यह मंदिर एक 5 फुट ऊंचे चबुतरे (स्तंभ) पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों के माध्यम से सीधे इस मंदिर के मंडप में जाया जा सकता है। मंडप की लंबाई करीब 60 फुट तथा चौड़ाई भी लगभग 40 फुट की है। मंडप के ठीक बीच में चार खंबे हैं जिसके किनारे की ओर भी 12 खम्बे हैं। जो मंडप की छत को अपने में संभाल कर रखा हुआ है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर तथा कलात्मक भी हैं। यहां के प्रत्येक खंबे पर कीचन भी बना हुआ है, जो कि छत का भार भी थामे हुए है। मंडप में मां लक्ष्मी, विश्नु जी तथा गरूड की मुर्ति रखी है। जहां पर भगवान के ध्यान में बैठे हुए राजपुरूष की सुंदर मुर्ति भी रखी हुई है। यहां के मंदिर के गर्भगृह में कई मुर्तियां रखी हुई है। जिनके बीच में ही एक काले पत्थर से बनी हुई शिवलिंग स्थापित की गई है। गर्भगृह के अंदर एक पंचमुखी नाग की मुर्ति भी स्थापित की गई है। साथ ही नृत्य करते हुए भगवान गणेश जी की सुन्दर मुर्ति एवं ध्यानमग्न अवस्था में डूबे राजपुरूष तथा उपासना करते हुए एक स्त्री पुरूष की भी मुर्ति यहां स्थापित है। मंदिर के सबसे ऊपरी हिस्से का शिखर नहीं है। मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर शिव, चामुंडा, विश्नु एवं भगवान गणेश जी आदि की मुर्तियां लगी हुई है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी एवं भगवान विश्नु तथा भगवान विष्णु के वामन अवतार की मुर्ति भी यहां के दीवार पर लगी हुई है। देवी मां सरस्वती की मुर्ति एवं शिव जी की अर्धनारिश्वर की मुर्ति भी यहां पर लगी हुई है।
प्राकृतिक सौंदर्य : यहां के मंदिर के चारो तरफ सतपुड़ा की मैकल पर्वत श्रेणी भी है। जिनके बीच में हरी भरी घाटी में यह अद्भुत एवं बेहद खूबसूरत मंदिर स्थित है। मंदिर के थीं सामने ही सुंदर हरी भरी पेड़ पौधों से भरी पहाड़ियों के बीच में सुंदर तालाब भी स्थित है। जहाँ पर बोटिंग भी किया जाता है। पर्यटको द्वारा जब इस तालाब में नाव के माध्यम से विचरण किया जाता हैं, तो आसपास देखकर अत्यंत ही शांति एवं मन मुग्ध हो जाती है। यह किसी स्वर्ग में विचरण करने के समान अनुभूति प्रदान करती है। जैसा की हमने आपकी बताया की यह मंदिर प्राकृति की परिवेश में बसा हुआ है, जिसके कारण यहाँ के नज़ारों में एक अलग ही तरह की आकर्षण बाल प्रतीत होती है। मैकल की पहाड़ियों के मध्य यहाँ की शानदार एवं विस्तृत पृष्ठभूमि एवं वातावरण मन को मोहित करती है। हरी भरी यहां के सुंदर पहाड़ियों के बीच एवं तालाब के किनारे में स्थित मंदिर के चारों ओर का पूरा नज़ारा तथा इस मंत्रमुग्ध नज़ारों के बीच भोरमदेव मंदिर का दर्शन आपके मन को मोहित जरूर कर देगा।
आवास व्यवस्था : अगर आप भोरमदेव आते है और यहां रहने के लिए आवास ढूंढ रहे है। तो हम आपको बता दे की भोरमदेव तथा सरोदादादर में पर्यटन मंडल हेतु विश्राम गृह एवं निजी रिसॉर्ट भी उपलब्ध है। कवर्धा जो की यहां से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में विश्राम गृह तथा निजी होटल भी भरपूर उपलब्ध हैं।
भोरमदेव मंदिर कैसे पहुंचें –
सड़क मार्ग द्वारा – रायपुर से करीब 116 km. तथा कवर्धा जिले से करीब 18 km. Ki दूरी पर स्थित है, जहां से प्रयाप्त दैनिक बस सेवा तथा टैक्सियां उपलब्ध हैं ।
रेल मार्ग द्वारा – हावड़ा मुंबई के मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर करीब 134 km. की दूरी पर स्थित एक समीपस्थ रेलवे जंक्शन है।
वायु मार्ग द्वारा – रायपुर जो की करीब 134 km. निकटतम हवाई अड्डा स्थित है, जो दिल्ली, मुंबई, नागपुर, हैदराबाद, बेगलुरु, कोलकाता, विशाखापट्नम तथा चैन्नई से जुड़ा हुआ है।