छत्तीसगढ़ में ऐसी रस्म,जिसमें राजा को मिलती है सजा : शान-शौकत के साथ बुलाया अपने गांव, बोले- कुटिया में बैठ खाएं नयाखाई, फिर देंगे रथ, Such a ritual in Chhattisgarh, in which the king gets punishment

Bastar Dasahra Chhattisgarh: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की सभी रस्में अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, एक रस्म ऐसी है, जिसमें ग्रामीण राजा को सजा देते हैं। इस रस्म का नाम है भीतर रैनी और बाहर रैनी। गुरुवार की शाम बाहर रैनी की रस्म देर रात तक चली। ग्रामीणों ने बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव को सजा दी। यह सजा थी नयाखाई की। राजा को पूरे शान-शौकत के साथ गांव बुलाया गया। फिर कुटिया में बिठा कर नए चावल से बनाए गए खीर को खिलाकर बाहर रैनी की रस्म अदा की गई। जिसके बाद विजय रथ को लौटाया गया।


दरअसल, बुधवार की देर रात ग्रामीणों ने राज महल के सामने से 8 चक्के वाला विजय रथ चुरा कर भीतर रैनी की परंपरा निभाई थी। इस रथ को कुम्हडाकोट गांव के जंगल में लेकर गए थे। जहां घने पेड़ों के नीचे रथ को छिपाकर रखा गया था। राजा को यह रथ लौटाने के लिए शर्त रखी गई थी कि, वे उनके साथ नयाखाई खाए। बस्तर राज परिवार के सदस्य (राजा) कमलचंद भंजदेव ने कहा कि, ग्रामीणों ने मुझे सजा दी है कि, मैं पूरी शान-शौकत के साथ गांव जाऊं और उनके साथ नयाखाई खाऊं। फिर मुझे रथ लौटाएंगे।

कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, गुरुवार को बाहर रैनी रस्म अदा की गई। आज के दिन हर एक गांव में नयाखाई मनाया जाता है। नया खाई की रस्म में बस्तर के असंख्य देवी देवता शामिल होते हैं। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को भी भोग लगाया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि, इस बार भी बस्तर रियासत की जमीनों से उपजाऊ चावल और देसी गाय के दूध से खीर बनाया गया। वारंगल से आए ब्राह्मणों ने ही इसे बनाया। जिसके बाद सभी देवी-देवताओं को भोग लगाया गया। कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, मैं इस खीर को खाकर अपना उपवास तोड़ा हूं।


माड़िया समुदाय करते हैं रथ की चोरी: दरअसल, सालों से चली आ रही और परंपरा के अनुसार बस्तर के किलेपाल, बस्तानार समेत 55 गांव के माड़िया समुदाय के सदस्य ही रथ की चोरी करते हैं। इस रथ को कुम्हडाकोट के जंगल में छिपाकर रखा जाता है। कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, ग्रामीणों ने सजा के तौर पर राजा को पूरे शान-शौकत, हाथी, घोड़ों के साथ कुम्हडाकोट बुलाया था। नयाखाई खाने के बाद ये ग्रामीण पूरे सम्मान के साथ रथ को खींच कर फिर से राज महल के सामने लाकर खड़ा करते हैं। रथ के आगे राजा चलते हैं और पीछे ग्रामीण रथ को खींचते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।


रथ देखने लोगों की उमड़ी भीड़: दरअसल, बाहर रैनी की इस परंपरा को देखने के लिए लाखों लोगों की भीड़ जगदलपुर में उमड़ी। कुम्हडाकोट से जब रथ लाया जा रहा था तो आतिशबाजी के साथ राजा और रथ का स्वागत किया गया। इस दौरान कई क्षेत्रीय देवी-देवताओं के देव विग्रह भी इस रस्म में शामिल हुए। इस दो मंजिला रथ को सैकड़ों ग्रामीणों ने मिलकर खींचा। इधर, जब रथ शहर के अंदर पहुंचा तो पूरे शहर की लाइट गुल कर दी गई। इसकी वजह यह रही कि विजय रथ काफी बड़ा है। 2 मंजिला होने की वजह से कहीं हाईटेंशन तार पर न छू जाए। इसलिए कुछ घंटे तक लाइट बंद रखी गई थी।

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