Chhattisgarh Me Milti Hai Lala Chiti Chatni Khane Se Hoti Hai Kai Bimariya Dur : आज तक आपने कई प्रकार के चटनी खाई होगी, भारत में लगभग हर घर में चटनी बनाई और खाई जाती है। इसके कई प्रकार होते है, किसी को धनिया की चटनी पसंद होती है तो किसी को मिर्च की तो किसी को आम की तो चटनी पसंद होती है। चटनी में आपको कई प्रकार के स्वाद मिल जाते है। आपको खट्टी, मीठी और तीखी चटनी के ऑप्शन आसानी से मिल जाते है। लेकिन क्या आपने कभी लाल चींटी की चटनी खाने के बारे में सोचा है या खाई है? जी हां, वही लाल चींटी, जिसके एक बाईट से काफी तेज दर्द होती है। जो अगर आपको काट ले तो अगले कुछ घंटे बेहद दर्द भरे होती हैं | यह बात सुनने में बड़ी अजीब लगे पर यह सच है की लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नही होती हैं। छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के चमत्कारी औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं।
लाला चीटियों में होती है औषधिय गुण: मीठे फलों वाले पदों पर अपना घोसला बनाने वाली चींटियों की इन इलाकों में बहुत मांग हैं। अपने औषधीय गुण के कारण धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ रही है। लाल चींटियों की चटनी यहां लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में बेची भी जा रही हैं। आदिवासी इलाकों में लाल चींटियों से बनाई जाने वाली चटनी को चापड़ा कहा जाता है। लाल चींटी की चटनी को औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा है आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपने पूर्वजो से मिली है। यदि किसी को बुखार आ जाए तो उस व्यक्ति को लाला चीटियों वाले स्थान पे बैठाया जाता है। चींटियां जब उस व्यक्ति को काटती हैं तो उसका बुखार पूरी तरह से उतर जाता है।
कैसे बनाई जाती है चटनी: प्रायः आम, अमरूद, साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं। आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इनकों पीस लिया जाता है। नमक, मिर्च मिलाकर रोटी के साथ या फिर ऐसे ही खा लिया जाता है। चींटीयो में फॉर्मिक एसिड होता है इससे चटनी चटपटी लगती है। इसमें प्रोटीन भी काफी मात्र में होता है।
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