दरअसल, अकलतरा क्षेत्र के कोटमीसोनार गांव में रविवार रात करीब 11.30 बजे लोगों को सड़क पर करीब एक फीट लंबा जीव घूमता दिखाई दिया। नजदीक से देखा तो मगरमच्छ का बच्चा था। इस पर गांव के निवासी दिल सिंह बघेल ने उसे अपने दो-तीन साथियों के साथ पकड़ लिया और घर ले गए। वहां रात भर उसे सुरक्षित रखा। फिर सुबह क्रोकोडाईल पार्क में छोड़ दिया। फिलहाल यहां के लोगों के लिए ये नई बात नहीं है।
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ग्रामीण मगरमच्छ के बच्चे को बर्तन में रखे रहे: ग्रामीण मगरमच्छ के बच्चे को बर्तन में रखे रहे।
कोटमीसोनार गांव में क्रोकोडाईल पार्क स्थापित है। जहां इस मौसम में मगरमच्छ के बच्चे अंडों से बाहर निकलते हैं। फिर सुरक्षा घेरा पार कर पार्क के बाहर निकल जाते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। बरसात के दिनों में मगरमच्छ के बच्चे बाहर आते हैं और ग्रामीण उन्हें सुरक्षित क्रोकोडाइल पार्क में छोड़ देते हैं। ग्रामीण कहते हैं कि ऐसा कभी हुआ नहीं कि इनसे कोई नुकसान पहुंचा हो।
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साल 2006 में बनाया गया क्रोकोडाइल पार्क: कोटमीसोना गांव के ज्यादातर तालाबों में पहले मगरमच्छों का अवास था। कई बार लोगों का आमना-सामना भी नहाने के दौरान मगरमछ़ों से हो जाता था। साल 2006 में सरकार ने यहां के तालाबों में बढ़ते मगरमच्छों की संख्या को देखते हुए क्रोकोडाइल पार्क स्थापित किया। अब वहां करीब 400 मगरमच्छ स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं। यह भी बताया जाता है कि चेन्नई के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा क्रोकोडाइल पार्क है।
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