बस्तर में आराध्य देवी को भक्तों द्वारा काला चस्मा चढ़ने की परंपरा, आखिर क्या है यह परंपरा और इसके पीछे का पूरा रहस्य और वजह, जानिए..!



Chaitra Navratri Year 2022 : पूरे देश भर में चैत्र नवरात्रि की धूम मची हुई है। सभी देवी मंदिरों में नवरात्री के 9 दिनों तक भक्तों का तांता लगा रहता है। एक तरफ जहां अपनी मनोकामना लेकर श्रद्धालु माता को प्रसाद तथा मन्नत पूरी होने के एवज में नारियल, फूल, पैसे तथा मिठाई चढ़ाते हैं। तो वहीं छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर में एक ऐसा मंदिर भी है जहां बस्तरवासी भक्त अपनी-अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए देवी को काला चश्मा चढ़ाते हैं। यह मान्यता सैकड़ों सालों से लगातार चलती आ रही है।


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दरअसल बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के कोटमसर गांव में हर 3 वर्ष के अंतराल में देवी बास्ताबुंदिन की जात्रा होती है। देवी को चश्मे चढ़ाकर जंगल के हरे भरे रहने की ग्रामीण भक्त द्वारा कामना की जाती हैं। दरअसल बस्तर के आदिवासियों हेतु बस्तर के घने जंगल जीवन यापन हेतु सबसे उत्तम तथा कुदरती देन है। आदिवासियों का यह मानना है कि भगवान उन्हें जंगल वरदान के रूप में भेंट किए हुए है। आदिवासी अपने जंगल को जान से भी ज्यादा चाहते हैं। वे ना केवल जगंल का संरक्षण संवर्धन मन से करते हैं बल्कि अपनी आराध्य देवी मां से भी मन्नत मांगते हैं कि उनके जंगल को किसी की भी बुरी नजर ना लगे।


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बस्तर के एक गांव में देवी मां को भक्त चढ़ाते हैं चश्मा : इतना ही नहीं किसी की भी बुरी नजर ना लगे इसके लिए भक्तों द्वारा बकायदा अपने आराध्य देवी को नजर का चश्मा भी चढ़ाया जाता हैं। सदियों से चली आ रही देवी के प्रति इस मन्नत को युवा पीढ़ी के द्वारा भी अपना लिया गया है। वे भी अपने पूर्वजों से देख सिख कर देवी को चश्मा चढ़ाते हैं। देवी को चश्मा चढ़ाने के लिए कोटोमसर वासी तीन साल का इंतजार करते रहते हैं। इसकी वजह है कुटुमसर उसके आसपास के गांव के लोग अपने-अपने आर्थिक सहयोग से यहां देवी पूजा के अवसर का आयोजन भी करते है। देवी पूजा करने तथा मन्नत मांगने वालों का मजमा इतना जबरदस्त लगा रहता है कि मजमा मेले की शक्ल ले लेता है।


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भारी भीड़ के चलते मेले का आयोजन : कांगेर वैली में निवास करने वाले आदिवासियों की संस्कृति के विशेष जानकार गंगाराम यह बताते हैं कि पहले एक ही परिवार के द्वारा देवी की पूजा किया जाता था। कुछ सालों से पूरे गांव या फिर पूरे बस्तरवासियों के द्वारा इसे अपना लिया गया है। मंदिर के पुजारी जीतू का यह कहना है कि इस साल भी देवी की कृपा होगी तथा हरे भरे वन की देवी रक्षा करेंगी। फिर से यह पूरा गांव देवी को चश्मा चढ़ाने में कामयाब होंगे। मंदिर के सिरहा संपत यह भी बताते हैं कि देवी को चढ़ाए गए ज्यादातर चश्मे भक्त अपने साथ ही ले जाते हैं। मेले के दूसरे ही दिन देवी को चश्मा पहनाकर पूरे गांव की परिक्रमा करवाई जाती है। ताकि बास्ताबुंदिन देवी की कृपा पूरे गांव में बनी रहे तथा वें पूरे ग्रामवासियों की रक्षा करें।


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Source - ABP news

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