सरकार के 3 स्पेशल डॉग जिन्होंने ढूंढा 200 किलो विस्फोटक : नक्सलियों के गढ़ में सीजर, शिवा और टोनी फोर्स की बचाते हैं जान : ऑपरेशन के दवरान IED ब्लास्ट से बचा चुके है में कई जवानों की जान


3 aise dog jo bachate hai desh ke rakshako ki jaan sarkar krti hai tarif - बस्तर के बीहड़ों में फोर्स का नक्सलियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चलाना वैसे तो आसान नहीं होता है। माओवादी सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के मंसूबे से जगह-जगह IED प्लांट करते रहते हैं और स्पाइक होल बनाकर रखते हैं। ऐसे में जमीन में दबे मौत के सामानो को बरामद करने के लिए फोर्स के खोजी कुत्तों की बेहद भूमिका होती है। इंटरनेशनल डॉग डे पर हम आपको बताने जा रहे है दंतेवाड़ा पुलिस के 3 डॉग के बारे में, शिवा,सीजर और टोनी नाम के इन डॉग ने अब तक 200 किलो से ज्यादा बारूद ढूंढने में पुलिस की मदद की है। वहीं, ऑपरेशन के दौरान भी कई जवानों की जिंदगी भी बचाई है।

टोनी के हैंडलर है आरक्षक कामता प्रसाद भारती हैं।
लगभग 4 साल से भी कम उम्र केे तीनों डॉग को जवान अपने साथ लेकर चलते हैं। टोनी, सीजर और शिवा तीनों IED के साथ कई स्पाइक्स भी ढूंढ चुके हैं। टोनी के हैंडलर आरक्षक कामता प्रसाद भारती हैं, तो सीजर के तनुज कुमार टोप्पो। इन डॉग्स ने ज्यादातर पोटाली, नहाड़ी, ककाड़ी, बुरगम जैसे इलाकों में प्रेशर IED, कमांड IED और पाइप बम खोजने में मदद की है। ये वो इलाके हैं जहां फोर्स को नुकसान पहुंचाने नक्सली कदम-कदम पर बारूद बिछा के कर रखते हैं।

शिवा, सीजर और टोनी ने अब तक 200 किलो से ज्यादा बारूद ढूंढने में बड़ी सफलता की है
बेल्जियम और लैब्रा नस्ल के डॉग दिलाते हैं ज्यादा सफलता वर्तमान में बस्तर में फोर्स के पास जितने भी डॉग हैं उनमें सबसे ज्यादा बेल्जियम और लैब्राडोर नस्ल के हैं। इन दोनों नस्ल के डॉग्स की अपनी-अपनी कई खासियत होती है। लैब्राडोर डॉग एक ऐसा नस्ल है जिनमें सूंघने की क्षमता अन्य डॉग्स से ज्यादा होती है। हालांकि, एक साथ लंबी दूरी तय करनी लैब के लिए थोड़ी मुश्किल हो जाती है, क्योंकि इनके वजनी शरीर के चलते ये जल्दी थक जाते हैं। ऐसे में फोर्स को कई बार रुकना पड़ता है। इनकी खासियत है कि IED ढूंढने में ये माहिर होते हैं। लैब्रा डॉग काफी शांत और मिलनसार स्वभाव के डॉग भी होते हैं।



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