पिता ने कुएं में फेंका, फिर भी गाती रहीं पंडवानी : पद्मश्री मिला तो पुराने दिनों को याद कर छलक गए उषा के आंसू, Father threw her in the well, yet Pandwani continued to sing



छत्तीसगढ़ के भिलाई की रहने वाली उषा बारले ने पद्मश्री पुरस्कार पाकर पूरे राज्य का नाम रोशन किया है। उषा ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं। उनके पिता को उनका गाना बजाना पसंद नहीं था। पिता ने उन्हें गुस्से में कुएं में फेंक दिया था, लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ी रही। उषा के फूफा ने उनकी कला को समझा और वो उनके सानिध्य में 7 साल की उम्र से पंडवानी गाती रहीं। उनके जीवन की सबसे कठिन घड़ी वो थी, जब उन्होंने पूरी रात अपने पिता के शव के सामने बैठकर पंडवानी गाई।

उषा बारले आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने बचपन से लेकर पद्मश्री पाने तक का सफर भास्कर के साथ शेयर की। उन्होंने बताया कि बचपन में वो स्कूल नहीं जाती थी। मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल-खेल में लकड़ी को चिकारा समझकर बजाती थीं और फिर पंडवानी गाती थी। उनके गीत को उनके फूफा और गुरु महेत्तर दास बघेल ने देखा तो उन्होंने कहा कि ये लड़की कुछ करेगी।

इसके बाद उन्होंने मोहल्ले के कई लड़के लड़कियों के साथ उन्हें पंडवानी सिखाना शुरू किया। इन बच्चों में उषा बारले के पति अमरदास बारले भी शामिल थे। गुरु के सानिध्य में उन्होंने पंडवानी गाना शुरू किया और उसके बाद आज वो 12 से अधिक देशों में पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं।



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