रहस्यमई मां महामाया देवी मंदिर संपूर्ण इतिहास : माँ महामाया मंदिर पुरानी बस्ती रायपुर छत्तीसगढ़, Ma Mahamaya Mandir Raipur Chhattisgarh


रायपुर स्थित महामाया मंदिर का इतिहास: यहां आज भी प्राचीन पद्धति से ही ज्योति कलश जलाई जाती है, पुरानी बस्ती स्थित मां महामाया मंदिर का इतिहास करीब 1400 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस कारण इस मंदिर में आज भी प्राचीन परंपरा जीवंत है। 

काफी चमत्कारिक है मां महामाया देवी मंदिर: छत्तीसगढ़ की राजधानी यानी रायपुर में स्थित यह प्राचीन महामाया मंदिर बेहद ही चमत्कारिक मंदिर माना जाता है। तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में माता के दर्शन करने के उद्देश्य से देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। वहीं, नवरात्र में सच्चे मन से मांगी गई मन्नत तत्काल पूरी होने का भी दावा श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार हैहयवंशी राजाओं के द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीस किले बनवाए तथा हर किले की शुरुआत में मां महामाया देवी के मंदिर बनवाए। मां के इन छत्तीसगढ़ों में एक गढ़ हैं, रायपुर का महामाया मंदिर, जहां महालक्ष्मी जी के रुप में दर्शन देती हैं मां महामाया और सम्लेश्वरी देवी।

गुंबज श्री यंत्र की आकृति का बनाया गया है यह मदिर: मंदिर के पुजारी द्वारा बताया गया कि मां महामाया देवी, मां महाकाली के स्वरुप में यहां विराजमान हैं। सामने मां सरस्वती के स्वरुप में मां सम्लेश्वरी देवी मंदिर विधमान है। इस तरह यहां महाकाली, मां महालक्ष्मी, मां सरस्वती तीनों माताजी प्रत्यक्ष प्रमाण रुप में यहां विराजमान हैं। मां के मंदिर के गर्भगृह की निर्माण शैली तांत्रिक विधि की है। मां के मंदिर के गुंबज श्री यंत्र की आकृति का ही बनाया गया है।



प्राचीन राजाओं की कुलदेवी है मां: यह मंदिर हैहयवंशी के राजा मोरध्वज द्वारा खास तांत्रिक विधि से बनवाया गया था। हैहयवंशी वंश के राजाओं की माता कुलदेवी है। इस तरह राजवंश के द्वारा पूरी छत्तीस मंदिरों का निर्माण करवाया गया था, यह मंदिर राजाओं के किलों के पास स्थित है। मंदिर के पुजारी यह बताते हैं कि मां के चरणों में जो भी भक्त सच्ची आस्था से मनोकामना मांगते है, वह पूरी जरूर होती है। यह पूरे देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां भगवान भैरव स्वरूप दो मंदिर हैं।

मां ने खुद बताई थी मंदिर की जगह, राजा की भूल से बदल गया मूर्ति का स्थान: पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास है। एक तो इस बात को लेकर कि गर्भगृह में मां की प्रतिमा दरवाजे के ठीक सीध में नहीं दिखती। इसे लेकर कई किवदंतियां भी हैं। ऐसी ही एक किंवदंती के मुताबिक प्राचीन कलचुरी वंश के राजा मोरध्वज की भूल के कारण ऐसा हुआ है। किंवदंती ऐसी है कि राजा मोरध्वज सेना के साथ खारुन नदी के तट पर पहुंचे। यहां पर उन्हें मां महामाया की प्रतिमा दिखाई दी। जब राजा प्रतिमा के करीब पहुंचे तो उन्हें सुनाई दिया कि मां उनसे कुछ कह रही हैं। मां के द्वारा कहा गया कि वे रायपुर नगर के लोगों के बीच रहना चाहती हैं। इसके लिए मंदिर तैयार किया जाए। 

राजा के द्वारा माता के आदेश का पालन करते हुए पुरानी बस्ती में मंदिर का निर्माण करवाया गया। मां ने राजा से कहा था कि वह स्वयं उनकी प्रतिमा को अपने कंधे पर रखकर मंदिर तक ले जाएं तथा रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को गलती से भी कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा के द्वारा मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए तथा जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर गलती से रख दिया। और बस यही कारण था कि प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा के द्वारा प्रतिमा को पुनः उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की गई लेकिन इसमें वें नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान था। इसी वजह से मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है। और एक खिड़की से मां दिखती हैं दूसरी से नहीं दिखाई पड़ती।

जानकारों के मुताबिक मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज के द्वारा तांत्रिक विधि से करवाया गया था। इसकी बनावट से भी कई तरह के रहस्य जुड़े हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह के बाहरी हिस्से में दो खिड़कियां एक सीध पर हैं। सामान्यतः दोनों खिड़कियों से मां की प्रतिमा की झलक नजर आनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। दाईं तरफ की खिड़की से मां की प्रतिमा का कुछ हिस्सा तो नजर जरूर आता है परंतु बाईं तरफ के खिड़की से नहीं।


प्रमाणिक है इस मंदिर से जुड़ा इतिहास: मंदिर से जुड़ा इतिहास प्रमाणिक है। इस पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के द्वारा कई रिसर्च किए गए हैं। शासन के पुरातत्व विभाग के द्वारा भी मंदिर के इतिहास को प्रमाणिक किया गया है। मंदिर के इतिहास पर सबसे पहले 1977 में महामाया महत्तम नामक किताब लिखी गई। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट के द्वारा 1996 में इसका संशोधिक अंक प्रकाशित करवाया गया। 2012 में मंदिर की ओर से प्रकाशित की गई रायपुर का वैभव श्री महामाया देवी मंदिर को इतिहासकारों के द्वारा प्रमाणिक किया गया है। सभी किवदंतियों तथा जनश्रुति का उल्लेख प्रमाणिक किताबों से ही मिलता है।


महामाया मंदिर से अन्य जाती धर्म परिवारों की जुड़ी हुई आस्था: मंदिर में हर साल नवरात्र पर आस्था के ज्योत जगमगाते हैं। यहां के कई ज्योत अन्य धर्म एवं जाती के भी होते हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर से अन्य जाती धर्म के परिवारों के भी काफी आस्था जुड़ी हुई हैं। ज्योत जलवाने वालों में देश-प्रदेश के साथ ही अन्य देश के लोग भी शामिल हैं।

सीधे गर्भगृह तक पहुंचती हैं सूर्य की किरणें: माता के मंदिर के बाहरी हिस्से में सम्लेश्वरी देवी का भी मंदिर है। मंदिर के पुजारी के द्वारा यह भी बताया गया है कि सूर्योदय के समय किरणें सम्लेश्वरी माता के गर्भगृह तक पहुंचती हैं। ठीक सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें मां महामाया के गर्भगृह में उनके चरणों को स्पर्श करती हैं। मंदिर की डिजाइन से यह अंदाजा लगाना बेहद ही मुश्किल है कि प्रतिमा तक सूर्य की किरणें आखिर पहुंचती कैसे होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के गुंबद के आकार में श्री यंत्र है। ऐसे में पौराणिक मान्यता यह भी है कि मंदिर के साथ दिव्य शक्तियां जुड़ी हुई हैं। तांत्रिकीय पद्धति से बनने वाले मंदिरों में इस तरह की विशेषता जरुर पाई जाती है।


माँ महामाया मंदिर रायपुर कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग: माँ महामाया देवी रायपुर तक पहोचने के लिए आपको पक्की सड़क आसानी से मिल जाएगी जिससे आप अपने वाहनों के माध्यम से यहा पहोच सकते है

रेल मार्ग: माँ महामाया देवी मंदिर पुरानी बस्ती रायपुर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है रायपुर स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 4 किलोमीटर है 

हवाई मार्ग: माँ महामाया देवी मंदिर पुरानी बस्ती रायपुर से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है रायपुर हवाई अड्डा जिसकी दुरी लगभग 15 किलोमीटर है 

हमारी राय: अगर आप माँ दुर्गा के दर्शन की सोच रहे है और आप राजधानी रायपुर में रहते है तो आपकी माँ दुर्गा का ये रूप माँ महामाया देवी के दर्शन जरुर करने चाहिए  


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