छत्तीसगढ़ के इस स्थान में राख से खेली जाती है होली : गायों को अपने ऊपर से चलाने का भी रिवाज, Holi is played with ashes


Gariyaband Chhattisgarh:
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में होली के समय एक अनोखी परंपरा है। यहां के एक गौ-सेवा केंद्र में होली के 3 दिन पहले से ही ब्रम्ह यज्ञ शुरू हो जाता है। जिसकी पूर्णाहुति की राख से होली खेली जाती है। इस बार 18 मार्च को भी लोग इसी राख से होली खेलेंगे। जिसके कारण यहां की होली पूरे प्रदेश में काफी प्रचलित है। 4 दिन तक होने वाले इस आयोजन में लोग बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। पूरे कार्यक्रम का मकसद गो-सेवा को बढ़ावा देना और उसका प्रचार प्रसार करना है।

गौ-माता की रक्षा और उसके महत्व को लोगों को समझाने पिछले 16 सालों से जिले के कांडसर गांव में गौ-सेवा केंद्र के गौ-सेवक बाबा उदयनाथ विश्व शांति ब्रम्ह यज्ञ वार्षिक महिमा सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। जिसमें उनके अनुयायी और प्रदेश भर के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा के लोग भी शामिल होते हैं। यहां गौ-माता के प्रचार प्रसार के संबंध में बात की जाती है। गायों से संबंधित ही प्रवचन होता है।

पहले दिन निकलती है कलश यात्रा: होली के 3 दिन पहले ही सम्मेलन की शुरूआत हो जाता है। जिसमें पहले दिन कलश यात्रा निकाली जाती है। इस बार ये सम्मेलन 15 मार्च से शुरू हुआ है। इस दिन कलश यात्रा निकालने के बाद यहां यज्ञ शुरू कर दिया गया है। इस यज्ञ में गौ-सेवक गौ-काष्ठ व आयुर्वेदिक विभिन्न औषधियों को हवन कुंड में डालते हैं। बताया जाता है कि यहां सुबह से हवन शुरू हो जाता है। इसके बाद यहां भजन कीर्तन और भंडारा का कार्यक्रम देर शाम तक चलता है। खास बात ये भी है कि हवन में सिर्फ गौ-काष्ठ व आयुर्वेदिक विभिन्न औषधियों को ही डाला जाता है।


भ्रमण के पहले ऐसे होती है पूजा: यहां एक और परंपरा है। परंपरा अनुसार गौ-सेवा केंद्र में रहने वाली गायों को गांव में 4 किलोमीटर तक पैदल चलाया जाता है। इसके लिए बकायदा गायों की पहले पूजा की जाती है। बाबा के अनुयायी गौ-माता के जयकारे लगाते हुए ,बैंड-बाजे के साथ ग्राम भ्रमण पर निकलते हैं। गौ-माता के राह में गांव भर में सूती कपड़े बिछाया जाता है। इसी कपड़े पर गाय चलती हैं। जगह-जगह गायों का स्वागत पूजा अर्चना के साथ किया जाता है। ऐसे भी भक्त होते हैं जो गौ-माता के राह में पेट के बल लेट कर उनके पांव अपने शरीर में लेते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से रोग ब्याधि से मुक्ति मिलती है। कष्ट दूर होते हैं।



हवन कुंड के राख से खेलेंगे होली: होली के दिन इस आयोजन का समापन होता है। इस बार 18 मार्च यानी कल इस कार्यक्रम का समापन होगा। समापन के दिन सुबह पहले यज्ञ की पूर्णाहुति होगी। पूर्णाहुति के बाद जो हवन कुंड से राख निकलेगा। उसी से यहां पर लोग होली खेलेंगे। होली खेलने के पहले राख को ठंड किया जाता है।


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