सर्टिफिकेट में बताएं गए छत्तीसगढ़ में दो मुख्यमंत्री : टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बताने वाले ढाई हजार वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट लोगाें से वापस लेगी सरकार


छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में सामने आए वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट में भूपेश बघेल के साथ टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बताने का विवाद तुल पकड़ता जा रहा है। अब प्रशासन ऐसे सभी टीकाकरण प्रमाणपत्रों को वापस मंगाकर निरस्त करेगा। उसकी जगह पर नया प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा। इसके आदेश खुद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ही दिए हैं।


स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा

यह बहुत बड़ी लापरवाही और नासमझी का नतीजा है। ऐसी गलती कोई कैसे कर सकता है। मैंने कलेक्टर से बात कर सभी प्रमाणपत्रों को वापस लेने को कहा है। क्योंकि अधिकारियों को जो प्रारूप दिया गया था, उसमें केवल एक फोटो था। दूसरा फोटो तो होना ही नहीं चाहिए था। विभाग में यह तय हुआ था कि टीकाकरण प्रमाणपत्र पर केवल मुख्यमंत्री की फोटो लगाई जाएगी। बताया जा रहा है, सिंहदेव के निर्देश के बाद अब जांजगीर-चांपा जिले में ऐसे दो मुख्यमंत्रियों की फोटो लगे प्रमाणपत्रों को वापस लेने की तैयारी हो रही है। बताया जा रहा है कि सक्ती ब्लॉक में ऐसे 5 हजार प्रमाणपत्र छपवाए गए थे। उनमें से 2500 लोगों को टीकाकरण के बाद यह प्रमाणपत्र दिया गया है। मतलब अब प्रशासन इन 2500 लोगों से यह प्रमाणपत्र वापस लेकर नया प्रमाणपत्र देगा।


कौन सा प्रमाणपत्र है जिसपर उठा है विवाद

जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर टीकाकरण करा रहे लोगों को कोविन पोर्टल से मिल रहे ऑनलाइन प्रमाणपत्र की तरह एक प्रमाणपत्र की हार्डकॉपी दी जा रही थी। इसमें भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की फोटो लगी थी। दोनों नेताओं के परिचय में मुख्यमंत्री लिखा हुआ था। मामला सामने आने के बाद पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा हो गया। इसे ढाई-ढाई के मुख्यमंत्री वाले फार्मुले के कन्फ्यूजन का परिणाम बताया जाने लगा। इसको लेकर सरकार की किरकिरी हुई।


सक्ती बीएमओ पर गिरी पहली गाज

हंगामा बढ़ा तो जांजगीर-चांपा कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को फटकार लगाई। सीएमएचओ ने पहले सक्ती बीएमओ अनिल कुमार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। विवाद बढ़ा तो कलेक्टर ने आनन-फानन में बीएमओ अनिल कुमार को पद से हटा दिया। शुरुआती जांच में कहा गया, प्रिंटर की गलती से ऐसा हुआ। वितरण से पहले प्रमाणपत्र को किसी अधिकारी ने गंभीरता से नहीं देखा।

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