चन्द्रहासिनी मंदिर : जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत रायगढ़ से लगभग 30 कि.मी. और सारंगढ़ से 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित, डभरा तहसील में मांड नदी, लात नदी और महानदी के संगम पर स्थित चन्द्रपुर है जहाँ माँ चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है। यह सिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चन्द्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी माँ के नाम से जानी जाती है। माँ चंद्रहासिनी पर हम सभी का अपार श्रद्धा एवं विश्वास है। भक्त माता के दरबार में नारियल,अगरबत्ती, फूलमाला लेकर पूजा-अर्चना करके अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। माँ अपने भक्तो की नि:स्वार्थ भाव से मनोकामना पूर्ण करती है। यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालु अपने कामना की पूर्ति करते हैं। माता पर भक्तों की आस्था की कोई सीमा नहीं है, उसी प्रकार माँ की भक्तों पर कृपा की कोई सीमा नहीं है |
माँ चंद्रहासिनी देवी : माँ की पावन धरा पर आश्विन नवरात्रि और चैत्र
नवरात्रि में दृश्य देखने लायक रहती है। माता के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज
उठता है, इस वातावरण में अपने आपको शामिल कर पाना किसी महान काम से कम
नहीं, यह सौभाग्य की बात होती है। माता की कीर्ति चारों दिशाओं
में फैली हुई है। जिसका गुणगान करने प्रान्त के ही नहीं वरन अन्य प्रान्तों से भी
लोग आते हैं।यहाँ वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है। मेले के अवसर पर भक्तों की
लम्बी कतारें लगी रहती है।
लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए ज्योतिकलश नवरात्रि के अवसर पर जलाते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की बलि देते हैं ( जो सरकारी कानूनों के तहत कभी बंद तो कभी चालू रहता है।) यहाँ बने पौराणिक व धार्मिक कथाओं की झाकियां समुद्र मंथन, महाभारत की द्यूत क्रीड़ा आदि, माँ चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
इतिहास –
माता सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां आज वर्तमान में शक्ति माता श्री दुर्गा के शक्तिपीठ स्थापित हैं।
छत्तीसगढ़ में भी अनेक स्थानों में माता के शक्तिपीठ स्थापित है। जिनमे से एक माता
चंद्रहासिनी का मंदिर है। यहाँ सिद्ध मां
दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में
विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी
और चंद्रसेनी या चंद्रासैनी मां के नाम से जानी जाती है।
पैर लगने से माता की नींद टूट गई थी : यहाँ प्रचलित किंवदंति के अनुसार हजारों वर्षो पूर्व माता चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ से होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गई। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता यहां पर विश्राम करने लगी । वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली।
एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से
गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और
माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और
मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर
निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास अर्थात
चन्द्रमा के सामान मुख होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाने लगा। राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के एक जमींदार
को सौंप दिया। उस जमींदार ने माता को अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की।
इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है।
अन्य मुर्तिया -
मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध,
चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा,
शेषनाग शय्या तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य
मूर्तियां जीवन्त लगती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी
महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की
विस्तार से जानकारी भी मिलती है।
दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती
है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा
आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ये नजारा देश भर के अन्य
मंदिरों में दुर्लभ है।
मां नाथलदाई -
कुछ ही दुरी (लगभग 1.5कि.मी.) पर माता नाथलदाई का मंदिर है जो की रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता
है। चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर (लगभग 1.5कि.मी.) आगे महानदी के
बीच ( पुल के बिच से जाना पड़ता है मंदिर ) मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है, जो की रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता है।
कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी
जरूरी है। अन्यथा माता नाराज हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात
के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता।
चंद्रहासिनी मंदिर जाने का सर्वोत्तम समय -
वैसे तो माता के दर्शन के लिए आप कभी भी जा
सकते है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं वर्ष के दोनों
नवरात्रि पर्वो पर मेले जैसा माहौल रहता है। छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के
श्रद्धालु यहां नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्जवलित कराकर मां से अपने सुख-समृद्धि
की कामना करते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की
बलि देते हैं।
पहुँच मार्ग -
सड़क मार्ग से : चंद्रपुर जिला मुख्यालय
जांजगीर-चाम्पा से 120 किलोमीटर तथा रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर से 221 किमी की दूरी स्थित है।
रेलमार्ग से रायगढ़ या खरसिया स्टेशन में उतरकर
बस व अन्य वाहनों से माता के दरबार पहुंच सकता
हैं। इसके अलावा जांजगीर, चांपा, सक्ती, सारंगढ़, डभरा से चंद्रपुर जाने के लिए दिन भर बस व जीप आदि की
सुविधा है। यात्री यदि चाहे तो चांपा या रायगढ़ से प्राइवेट वाहन किराए पर लेकर भी
चंद्रपुर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग से : निकटतम रेलवे स्टेशन रायगढ़ है। जो कि चंद्रपुर से 32 कि. मी. दूर है। फिर यहाँ से बस और ऑटो से पंहुचा जा सकता है।
हवाई मार्ग : बिलासा देवी केंवट हवाई अड्डा, बिलासपुर। स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा, रायपुर है।
हमारी राय -
यह जगह सच में बेहद खुबसूरत है बहते नदी व मंदिरों से सजे यह शहर आपको जरुर पसंन्द आयेगी।
यहाँ माँ चंद्रहासिनी देवी मंदिर के आलवा और भी कई सारे मंदिर व घुमने की जगहे है।
यहाँ आप मंदिर के पास नदी किनारे नवका का आनंद भी उठा सकते है।
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