भारत में दो क्षेत्र ऐसे
हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की
अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन
गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित
करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न
संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके
भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त और बौद्ध
संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है,
जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है।
इतिहास
मुख्य लेख: रामायणकालीन
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के
दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता
है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका
नाम उस काल में 'चित्रोत्पला' था) का मत्स्य पुराण महाभारत के भीष्म पर्व तथा
ब्रह्म पुराण के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी
छत्तीसगढ़ के वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम
में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ
पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी
पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर
निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।
छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों
का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।"
इतिहास में इसके
प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी
यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है
कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक
बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर
सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ
था, ऐसा माना जाता है।
प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों तथा कलचुरियों
का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था।
क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख थे: बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर
जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा -
महल भी कहते है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश
के राजा रामचन्द्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते
हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा।
साहित्य
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ी
साहित्य और छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार
छत्तीसगढ़ साहित्यिक
परम्परा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश है। इस जनपद का लेखन हिन्दी
साहित्य के सुनहरे पृष्ठों को पुरातन समय से सजाता-संवारता रहा है।
भाषा साहित्य पर और
साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है।
परन्तु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में
नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों
ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे।
इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।
अनेक साहित्यको ने इस एक
हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है :
छत्तीसगढ़ी गाथा युग -
सन् 1000 से 1500 ई. तक
छत्तीसगढ़ी भक्ति युग - मध्य
काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक
छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग -
सन् 1900 से आज तक
यह विभाजन किसी प्रवृत्ति
की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बात यह है कि दूसरे
आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।
भूगोल
छत्तीसगढ़ के उत्तर में
उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। यह
प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल,
सागौन, साजा, बीजा और बाँस के वृक्षों
की अधिकता है। यहाँ सबसे ज्यादा मिस्रित वन पाया जाता है। सागौन की कुछ उन्नत
किस्म भी छत्तीसगढ़ के वनो में पायी जाती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी
और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं, जो लगभग 80 कि॰मी॰ चौड़ा और 322 कि॰मी॰ लम्बा है। समुद्र सतह से यह मैदान करीब 300 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पश्चिम में महानदी
तथा शिवनाथ का दोआब है। इस मैदानी क्षेत्र के भीतर हैं रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिले के दक्षिणी भाग। धान की
भरपूर पैदावार के कारण इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्र के उत्तर
में है मैकल पर्वत शृंखला। सरगुजा की उच्चतम भूमि ईशान कोण में है। पूर्व में
उड़ीसा की छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ हैं और आग्नेय में सिहावा के पर्वत शृंग है। दक्षिण
में बस्तर भी गिरि - मालाओं से भरा हुआ है। छत्तीसगढ़ के तीन प्राकृतिक खण्ड हैं :
उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी
सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख
नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ, खारुन,सोंढूर, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी।
1.2 नवंबर 1861 को मध्य प्रांत का गठन हुआ. इसकी राजधानी
नागपुर थी. मध्यप्रांत में छत्तीसगढ़ एक ज़िला था.
2.1862 में मध्य प्रांत में
पांच संभाग बनाये गये जिसमें छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर था.
3.सन् 1905 में जशपुर, सरगुजा, उदयपुर, चांगभखार एवं कोरिया रियासतों को छत्तीसगढ़ में
मिलाया गया तथा संबलपुर को बंगाल प्रांत में मिलाया गया. इसी वर्ष छत्तीसगढ़ का
प्रथम मानचित्र बनाया गया.
4.सन् 1918 में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ राज्य
का स्पष्ट रेखा चित्र अपनी पांडुलिपि में खींचा अतः इन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम
स्वप्नदृष्टा व संकल्पनाकार कहा जाता है.
5.सन् 1924 में रायपुर जिला परिषद ने संकल्प पारित करके
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की.
6.सन् 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पंडित
सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की मांग रखी.
7.सन् 1946 में ठाकुर प्यारेलाल ने पृथक छत्तीसगढ़ मांग
के लिए छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन किया जो कि छत्तीसगढ़ निर्माण हेतु प्रथम
संगठन था.
8.सन् 1947 स्वतंत्रता प्राप्ति के समय छत्तीसगढ़
मध्यप्रांत और बरार का हिस्सा था.
9.सन् 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर
राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की मांग की गई.
10.सन् 1955 रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य
प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की मांग रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था.
11.सन् 1956 में डा. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में
छत्तीसगढ़ महासभा का गठन राजनांदगांव जिले में किया गया. इसके महासचिव दशरथ चौबे
थे. इसी वर्ष मध्यप्रदेश के गठन के साथ छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश में शामिल किया
गया.
12.सन् 1967 में डॉक्टर खूबचंद बघेल ने बैरिस्टर छेदीलाल
की सहायता से राजनांदगांव में पृथक छत्तीसगढ़ हेतु छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ का गठन
किया जिसके उपाध्यक्ष व्दारिका प्रसाद तिवारी थे.
13.सन् 1976 में शंकर गुहा नियोगी ने पृथक छत्तीसगढ़ हेतु
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का गठन किया.
14.सन् 1983 में शंकर गुहा नियोगी के व्दारा छत्तीसगढ़
संग्राम मंच का गठन किया गया. पवन दीवान व्दारा पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी का गठन किया
गया.
15.सन् 1994 में तत्कालीन साजा विधायक रविंद्र चौबे ने
मध्य प्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ निर्माण सम्बन्धी अशासकीय संकल्प प्रस्तुत
किया गया जो सर्वसम्मति से पारित हुआ.
16.1 मई 1998 को मध्यप्रदेश विधान सभा में छत्तीसगढ़
निर्माण के लिए शासकीय संकल्प पारित किया गया.
17.25 जुलाई 2000 को श्री लालकृष्ण आडवाणी व्दारा लोकसभा में
विधेयक प्रस्तुत किया गया. 31 जुलाई 2000 विधेयक लोकसभा में पारित किया गया. 3 अगस्त 2000 राज्यसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया और 9 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया. इसे 25 अगस्त 2000 तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने मध्यप्रदेश राज्यव
पुर्नगठन अधिनियम का अनुमोदित किया.
18.1 नवंबर 2000 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई.
छत्तीसगढ़ देश का 26वां राज्य बना.
19.छत्तीसगढ़ का निर्माण
मध्यप्रदेश के तीन संभाग रायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर के 16 जिलों, 96 तहसीलों और 146 विकासखंडों से किया गया. प्रदेश की राजधानी रायपुर को बनाया गया तथा बिलासपुर
में उच्च न्यायालय की स्थापना की गई.
20.छत्तीसगढ़ में विधान सभा
की प्रथम बैठक 14 दिसंबर 2000 से 20 दिसंबर 2000 तक रायपुर में राजकुमार
कॉलेज के जशपुर हाल में हुई.
जिले :-
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के
समय यहाँ सिर्फ 16 जिले थे पर बाद में 2 नए जिलो की घोषणा की गयी जो कि नारायणपुर व
बीजापुर थे। पर इसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 15 अगस्त 20 जनवरी 2012 से अस्तित्व में आ गये। 15 अगस्त 2019 को छत्तीसगढ़ की नई सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने
बिलासपुर जिले से काट कर 1 नए जिले के निर्माण की
घोषणा की। इस तरह अब छत्तीसगढ़ में कुल 28 जिले हो गए हैं।
कवर्धा जिला • *कांकेर जिला (उत्तर बस्तर) • कोरबा जिला
• कोरिया जिला • जशपुर जिला • जांजगीर-चाम्पा जिला
• दन्तेवाड़ा जिला (दक्षिण
बस्तर) • दुर्ग जिला •
धमतरी जिला
• बिलासपुर जिला • बस्तर जिला • महासमुन्द जिला •
राजनांदगांव जिला • रायगढ जिला • रायपुर जिला •
सरगुजा जिला
• नारायणपुर जिला • बीजापुर • बेमेतरा • बालोद जिला • बलौदा बाज़ार • बलरामपुर • गरियाबंद • सूरजपुर
• कोंडागांव जिला • मुंगेली जिला • सुकमा जिला • गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला
कला एवं संस्कृति :-
आदिवासी कला काफी पुरानी है। प्रदेश की आधिकारिक भाषा हिन्दी है और लगभग संपूर्ण जनसंख्या उसका प्रयोग करती है। प्रदेश की आदिवासी जनसंख्या हिन्दी की एक उपभाषा छत्तीसगढ़ी बोलती है।
लोकगीत और लोकनृत्य :-
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ के
लोकगीत और लोकनृत्य
छत्तीसगढ़ की संस्कृति
में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार
में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है -- भाव प्रवणता।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डण्डा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत।
इनमें से सुआ, करमा, डण्डा तथा पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं।
खेल :-
छत्तीसगढ़ी बाल खेलों में
अटकन-बटकन लोकप्रिय सामूहिक खेल है। इस खेल में बच्चे आंगन परछी में बैठकर,
गोलाकार घेरा बनाते है। घेरा बनाने के बाद जमीन
में हाथों के पंजे रख देते है। एक लड़का अगुवा के रूप में अपने दाहिने हाथ की
तर्जनी उन उल्टे पंजों पर बारी-बारी से छुआता है। गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली
पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है। इस क्रम में जब सबकी हथेली सीधे
हो जाते है, तो अंतिम बच्चा गीत को
आगे बढ़ाता है। इस गीत के बाद एक दूसरे के कान पकड़कर गीत गाते है।
फुगड़ी -
बालिकाओं द्वारा खेला
जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है। चार, छः लड़कियां इकट्ठा होकर, ऊंखरु बैठकर बारी-बारी से
लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है। थककर या सांस भरने से जिस
खिलाड़ी के पांव चलने रुक जाते हैं वह हट जाती है।
लंगड़ी -
यह वृद्धि चातुर्थ और
चालाकी का खेल है। यह छू छुओवल की भांति खेला जाता है। इसमें खिलाड़ी एड़ी मोड़कर
बैठ जाते है और हथेली घुटनों पर रख लेते है। जो बच्चा हाथ रखने में पीछे होता है
बीच में उठकर कहता है।
खुडुवा (कबड्डी) -
खुड़वा पाली दर पाली
कबड्डी की भांति खेला जाने वाला खेल है। दल बनाने के इसके नियम कबड्डी से भिन्न
है। दो खिलाड़ी अगुवा बन जाते है। शेष खिलाड़ी जोड़ी में गुप्त नाम धर कर अगुवा
खिलाड़ियों के पास जाते है - चटक जा कहने पर वे अपना गुप्त नाम बताते है। नाम चयन
के आधार पर दल बन जाता है। इसमें निर्णायक की भूमिका नहीं होती, सामूहिक निर्णय लिया जाता है।
डांडी पौहा
डांडी पौहा गोल घेरे में
खेला जाने वाला स्पर्द्धात्मक खेल है। गली में या मैदान में लकड़ी से गोल घेरा बना
दिया जाता है। खिलाड़ी दल गोल घेरे के भीतर रहते है। एक खिलाड़ी गोले से बाहर रहता
है। खिलाड़ियों के बीच लय बद्ध गीत होता है। गीत की समाप्ति पर बाहर की खिलाड़ी
भीतर के खिलाड़ी किसी लकड़े के नाम लेकर पुकारता है। नाम बोलते ही शेष गोल घेरे से
बाहर आ जाते है और संकेत के साथ बाहर और भीतर के खिलाड़ी एक दूसरे को अपनी ओर करने
के लिए बल लगाते है, जो खींचने में सफल होता
वह जीतता है। अंतिम क्रम तक यह स्पर्द्धा चलती है।
जातियां
मुख्य लेख: छत्तीसगढ़ की
जातियाँ
छत्तीसगढ़ मॆं कई जातियां
और जनजातियां हैं। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़
राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत (78.22 लाख) जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है।
अघरीया, गोंड, कंवर</span] बिंझवार ,उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा आदि प्रमुख जनजातियॉ
है। अबूझमाड़िया, कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर राज्य के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ हैं। इनके अतिरिक्त
अन्य जनजाति समूह भी है, जिनकी जनसंख्या
अपेक्षाकृत कम है। कृत कम है।
पर्यटन स्थल -
राजिम - राजिम (Rajim) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद ज़िले में स्थित एक नगरपंचायत है। राजिम महानदी के तट पर स्थित का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का "प्रयाग" भी कहते हैं।
यहाँ के प्रसिद्ध राजीव
लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से
लेकर शिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान
छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है।
आरंग = मंदिर का शहर
महामाया मंदिर रतनपुर (
बिलासपुर )
खूंटाघाट बांध रतनपुर (
बिलासपुर )
मरी माई मंदिर ( भनवारटंक
)
नवागढ़
सेतगंगा
चित्रकोट जलप्रपात
तीरथगढ़ जलप्रपात
इंद्रावती राष्ट्रीय
उद्यान
कांगेर घाटी राष्ट्रीय
उद्यान
गुरू घासीदास राष्ट्रीय
उद्यान
कैलाश गुफा
गंगरेल बांध
सिरपुर
मल्हार
भोरमदेव मंदिर
मैनपाट
बमलेश्वरी मंदिर
अमरकंटक
मैत्रीबाग भिलाई
सर्वमंगला मंदिर (कोरबा)
कानन पेंडारी ( बिलासपुर
)
जंगल सफारी ( रायपुर )
जल विहार बुका ( कोरबा
) - हसदेव नदी के चारो तरफ हरे भरे
पहाड़ियों से घिरा जलमग्न सुंदर प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण मिनीमाता बांगो बांध
का भराओ वाला जगह है जो कोरबा जिला के मड़ई गांव से पांच किलोमीटर की दूरी पर
स्थित है। यहां नाविक रहते है जो जल विहार कराते है।
केंदई जल प्रपात - केंदई
जलप्रपात कोरबा जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर
अम्बिकापुर रोड पर स्थित है इस पर सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। जलप्रपात
के नीचे जाने पर इंद्रधनुष की सुंदर चित्र बनती है जो मनमोहक है देखा जा सकता है।
तथा चारो ओर हरे भरे पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
गोल्डन आइलैंड - गोल्डन आइलैंड केंदई ग्राम से सात किलोमीटर मीटर दक्षिण में है जहां तक सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। जो हसदेव नदी पर एक लैंड बना हुआ है जहां नाविक भी रहते है जो कभी भी जल विहार करा सकते है। जो बहुत ही आनंदमय जगह है। तथा पिकनिक स्पॉट भी है।
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